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उन्हें कोई काम करवाना होता था तो बड़े भाई पर बहुत दबाव डालती थीं, डराती थीं कि 'मुझे सुरसागर में डूबना पड़ेगा, आपके भाई की वजह से'। तब बड़े भाई घबरा जाते थे। क्योंकि उनकी पहली पत्नी की मृत्यु का आरोप भी बड़े भाई पर लगा था। दूसरी पत्नी के साथ भी यदि ऐसा कुछ हो जाए तो? तो वे डर के मारे दब गए थे। अंत में भाई को पता चल गया था कि यह स्त्री अंदर ही अंदर पैंतरे रच रही है।
दूसरी पत्नी थीं इसलिए बड़े भाई उन्हें खुश रखने के लिए उनसे व्यापार की बातें करते थे, कि 'इस साल काम ऐसा चल रहा है, इतनी कमाई हुई। तो धीरे-धीरे भाभी ने काम में हाथ डाल दिया और फिर हिसाब पूछना शुरू कर दिया। 'अभी क्या चल रहा है? कितनी कमाई है?' बड़े भाई से ऐसा सब पूछती थीं और वे अंबालाल भाई से भी पूछती थीं लेकिन उनका अहंकार ज़रा भारी था तो उन्होंने भाभी से कह दिया कि 'मैं हिसाब नहीं दूंगा। आपको बिज़नेस में बिल्कुल भी हाथ नहीं डालना है। मेरी स्वतंत्रता में दखलंदाजी नहीं चलेगी। मैं यहाँ किसी का नौकर नहीं हूँ, मैं तो मालिक हूँ।
___ इस तरह देवर भाभी के बीच में टकराव चलता रहता था। खाने में भी किच-किच हो जाती थी। जब खाने में वेढमी होती तब अंबालाल को उसमें बहुत सारा घी चाहिए था। जबकि भाभी थोड़ाथोडा देती थीं तब उन्हें वह ठीक नहीं लगता था और वे चिढ़ जाते थे। बड़े भाई को अच्छा-अच्छा परोसती थीं और अंबालाल भाई को कम देती थीं। फिर बड़े भाई कहते थे कि 'ऐसा क्यों करती हो?' तो भाभी कहती थीं कि 'उन्हें जितना चाहिए उतना ले लें'। लेकिन अंबालाल को ऐसा व्यवहार ठीक नहीं लगता था, चिढ़ मचती थी तो भाभी के साथ खाने की बात को लेकर झंझट होती रहती थी।
एक बार भाभी के साथ ज़रा बोल-चाल हो गई तब बड़े भाई हाज़िर नहीं थे तो अंबालाल के मन में बुरा लगा। 'ऐसा क्यों कर रही हैं ये? भाभी के वश में क्यों रहें? इसकी बजाय स्वतंत्र रहें तो ज़्यादा अच्छा है। अब इसमें से छूट जाना है'।
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