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के लिए इकत्तीस दिन के उपवास किए थे लेकिन उपवास छोड़ना नहीं आया। भूल में उपवास छोड़ते समय छाछ पिला दी, उससे विकार हो गया और फिर तबियत बिगड़ने से उनकी मृत्यु हो गई।
बड़े भाई मृत्यु के चौबीस घंटे पहले ऐसा ही कह रहे थे कि 'मैं पूर्व जन्म का योगी हूँ। कौन से पापों की वजह से मैं यहाँ पर आया'। और वे खुद योगी ही थे।
दादाश्री कहते थे कि 'हमने बहुत लोग देखे हैं। मैं हर एक में यह मार्क करता था कि इसकी विशेषता क्या है'। अत: बड़े भाई की भी स्टडी की थी कि ये हैं तो वास्तव में योगी पुरुष ही और योगी यानी कैसे कि जो चाहे वैसा कर सकते थे इतने स्ट्रोंग माइन्ड वाले थे! यदि वे तय करें कि मुझे छः महीने सिर्फ दूध पर ही रहना है तो वे ऐसा कर सकते थे!
[8] भाभी [8.1] भाभी के साथ कर्मों का हिसाब दादाश्री की भाभी दिवाली बा, उनके बड़े भाई मणि भाई की दूसरी पत्नी थीं। यों दर्शनीय, प्रभावशाली, और रौबदार थीं। बड़ौदा की जोगीदास विट्ठल पोल में रहती थीं। बड़े भाई की वजह से मुहल्ले में उनका भी रौब था। बड़े भाई राजा जैसे थे और भाभी को लोग ऐसा कहते थे कि, 'महारानी जैसी हैं'। शादी के बीस साल बाद वे विधवा हो गईं थीं।
बड़े भाई खाना खाने बैठते तब भाभी मीठा-मीठा बोलती थीं कि 'आपके बिना मैं जी नहीं पाऊँगी, मैं रह नहीं सकूँगी'। तो बड़े भाई इसे सही मान लेते थे और मन में ऐसा मानते थे कि ऐसी वाइफ मुझे फिर नहीं मिलेगी। इस तरह धीरे-धीरे भाभी ने भाई पर अपना कब्जा जमा लिया। अंबालाल यह देखते थे और वे समझ गए कि ये भाभी भाई के साथ स्त्री चरित्र खेल रही हैं। शेर जैसे बड़े भाई और उन्हें बकरी जैसा बना दिया था।
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