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बड़े भाई का अंबालाल के प्रति बहुत प्रेम था । आमने सामने प्रकृति मेल नहीं खाती थी, दोनों के व्यू पोइन्ट अलग-अलग थे। सिर्फ अहंकार की लाइन में दोनों भाई एक सरीखे थे, क्षत्रियपन । यदि कोई ताकतवर आदमी कमज़ोर को मारता था तो वे कमज़ोर व्यक्ति के पक्ष में रहकर, ताकतवर का सामना करते थे !
भाभी की सोहबत में बड़े भाई, राजा जैसे इंसान, उन्होंने जो कभी भी नहीं किया था, वैसा करने लगे। किसी को कुछ लकड़े की ज़रूरत होगी, उन्हें वे लकड़े दिलवाने के लिए बड़े भाई ने कमीशन रखा, सौ-डेढ़ सौ रुपए । अंबालाल ने बड़े भाई को इस बात के लिए पकड़ा कि 'आपने कमीशन खाया ? आप ऐसा करते हो ? जिनकी आखें देखकर सौ लोग इधर उधर हो जाते, ऐसे पुरुष ऐसा कमीशन खाना सीख गए?' उन्होंने जब उनकी भूल बताई तब भाभी ने उनका बचाव किया, कि, 'अगर हमें परेशानी हो और किसी का काम कर दें तो उससे सौ-डेढ़ सौ रुपए मिलें तो उसमें क्या बुरा है? तब अंबालाल ने कहा कि 'हम शेर के बच्चे हैं, शेर ने किसी भी जन्म में घास नहीं खाई है'।
बाकी, यों तो खानदानी इंसान थे लेकिन वाइफ के दवाब में आकर यह भूल कर बैठे ! फिर बड़े भाई ने कहा, कि 'यह कमीशन नहीं रखना है। अब तू यह बदल दे, वापस दे आ'।
उस ज़माने में पटेलों में दारू पीने की आदत थी, तो बड़े भाई में वह बुरी आदत घुस गई । काम धंधे में खुद बड़े भाई के साथ रहे, उसमें बड़े भाई की इस बुरी आदत की वजह से तकलीफ होने लगी, और उधार चढ़ने लगा । इस बुरी आदत के घुसने से लोगों में बड़े भाई की वैल्यू कम होने लगी। प्रभावशाली व्यक्ति अगर पीने लगे तो उसकी इज़्ज़त खत्म हो जाती है !
बड़े भाई स्ट्रोंग मन के थे, किसी की नहीं सुनते थे। अंत में उन्होंने अपने आप ही शराब छोड़ दी । उसके दो साल बाद यह कहकर कि मुझे शरीर में से शराब के परमाणु साफ करने हैं, उन्होंने पाप धोने
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