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( ३१ ख }
नहीं होता इसलिये स्पर्शादि १६ और ये १० इन २६ प्रकृतियों का बन्ध में अभाव दिखाया गया था वह सत्ता में धाकर जुड़ जाती है। उदययोग्य १२२ में से छोड़ी हुई २६ प्रकृतियों को जोड़कर सम्रारूप १४८ प्रकृति जानमा )। संख्या- प्रनन्तानन्त जोब जानना ।
क्षेत्र—जन रहने का स्थान सर्वलोक है । यहां क्षेत्र स्थावर जीव की अपेक्षा जानना ( सकाय जीत्रो का क्षेत्र मा को जानना । स्पर्शन- सर्वलोक (विग्रह गति में और मारणांतिक समुद्घात की अपेक्षा जानना)
फाल
जीव निरन्तर रहने की अपेक्षा समय वह काल कहलाता है । नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल अर्थात् सर्वलोक में निरन्तर मिथ्या दृष्टि पाये जाते हैं। जैसे सूक्ष्म निगोदिया जांव लोककाश के सर्व प्रदेश में मौजूद है, एक जीव अनादि मिव्या दृष्टि अनादि काल में चला भा रहा है। सादिमिय्या दृष्टि निरन्तर अन्तर्मुहूर्त से देशांन अपुद्गल परावर्तन कान तक रह सकता है। इसके बाद सम्यक्व ग्रहण करके निश्चय रूप से मोक्ष में चला जायगा ।
अन्तर - मिथ्यात्व छूटने के बाद दुबारा जितने समय के बाद मिथ्या दृष्टि बने वह समय अन्तर कहलाता है। नाना जीवों की अपेक्षा कभी भी
अन्तर नहीं पडता । एक जीव का मिथ्यात्व छूटने के बाद श्रन्तर्मुहुर्त तक उपदान सम्यग्दृष्टि रहकर फिर दुबारा मिथ्या दृष्टि बन नकता है। मिथ्या दृष्टि जीव जब क्षयोपशम सम्यग्दृष्टि बन जाता है तब वह जीव अगर क्षायिक सम्यग्दृष्टि न बने तो १३२ सागर काल के बाद फिर मिथ्या दृष्टि बन सकता है ।
जाति (योनि) - ८४ लाख योनि जानना । उनका विवरण पृथ्वीकाय ७ लाख, जलकाय लाख, अग्निकाय ७ लाख, वयुका ७ लाख नित्यनियोग ७ लाख, इतर निगोद ७ लाख, प्रत्येक वनस्पति १० लाख, दीन्द्रिय २ लाख, भीन्द्रिय २ लाख, चतुरिन्द्रिव २ लाख पंचेन्द्रिय पशु ४ लाख, तारको ४ लाख, देव ४ लाख, मनुष्य १४ लाख इस प्रकार ८४ लाख योति जानता ।
कुल – १६६ ।। लाख कोटिकुल जानना, उनका विवरण पृथ्वीका २२ लाख कोटि, जलकाय ७ लाख कोटि परिनकाय लाख कोटि, वायुकाय ७ लाख कोटि, वनस्पतिकाय २८ लाख कोटि हीन्द्रिय ७ लाख कोटि चीद्रिय लाख कोटि चतुरिन्द्रिय लाख कोटि जनचर पंचेन्द्रिय १२ ।। लाख कोटि स्थलचर पंचेन्द्रिय १० लाख कोटि, नभचर पंचेन्द्रिय १२ लाख कोटि छाती चलने वाले सर्पादिक है लाख कोटि, नारकी २५ लाख कोटि देव २६ लाख कोटि, मनुष्य १४ लाख कोटि इस प्रकार २६२ ।। लाख कोटि कुल जानना ।
सूचना – कोई प्राचार्य मनुष्य गति में १२ लाख कोटि कुल गिनकर चारों गतियों में १६७।। लाख कोटि कुल मानते है। गोटमार
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जीव कांड गाया १९३ मे ११६ के अनुसार ।