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किरण १]
महावीर-उपदेशावतार
"Simple living and high thinking" के. की अप्रतिम्प संग्राइक-निके साक्षात् उदाइ गए हैं । श्रीमान् ज्वलन्त उदाहरगा हैं।
रायबहादुर डा० गौरीशङ्कर जी श्राझा अपने बीकानेर गायक अापक लेख जैन तथा जैनेतर सामयिक पत्र-पत्रिकाओं, इतिहास ग्वण्उ २ पृ. ७१५ में लिखते हैं कि -"यह यथा हिन्दुस्तानी', 'राजस्थानी', 'भारतीयविद्या', 'जैन- प्रमन्नताका विषय है कि बीकानेर के उत्साहा जैन युधकासिद्धान्त', नागरी प्र० पत्रिका',जैनसस्य प्रकाश', 'अनेकान', अगरचंद भंवरलाल नाइटा (ोसवाल) ने अब इस प्रा नान श्रादिमें निरन्तर प्रकाशित होते रहते हैं। श्रापक प्रत्येक जैनमाहित्यके उद्धारका भार अपने हायम लेकर वदाम लेखमें अापकी सूक्तगवेषणाशक्ति नवोन्मेषशाल प्रतिमा प्राप्त मामग्री के श्राधार पर अालोचनालक ढगस कुछ सुंदर एवं मर्वतामुखी मेधाका विलक्षण साम्मश्रण दाता है। अब ग्रन्थोकी रचना की है, जो इन दासक लिये महत्वपूर्ण है। तक अापक २०० से ऊपर लेग्व सामयिक पत्र-पत्रिका में नाहटा बन्धुश्रीने नष्ट होने वाले जेनसाहित्यक ग्रंथोमा परिप्रकाशित हो चुके हैं। आपको कई वर्ष पूर्व जिनदत्त सूरि' श्रम पूर्वक निजी व्ययम बगद कर अपने संग्रह में सुरक्षित नामक लेखके लिये फलौधी जैन संबकी ओरमे एक रजत कर लिया है । बीकानेर यात्रा के समय मुझे कई बार उनके पदक भी मिला था।
मंग्रह को देखने का अवसर मिला था।" आप लेग्वक मंग्राहक के अतिरिक्त उच्च कोटि के ममा
श्रापके साथ यापक भ्रातपत्र श्री भंवरलाल जी नाहटा लोनक एवं समादक भी है। श्राप कलकत्तेसे प्रकाशन
भी माहित्यिक क्षेत्रम नलगन है। आपने अभी तक ७ ग्रंथो "राजम्याना" के सह-संपादक भी रह चुके और अभी 'राज
का प्रयापन किया है। जिनमम 'युग प्र. श्रीजिनचंद्रमार', स्थान भारती' के संपादकीम भी आपका शुभ नाम है।
'दादा कुशल सरि', 'मांगधारी श्री जिनचंद्रमार' तथा तआपने अपने यहाँ ‘अभय जैनपुस्तकालय', 'अन्य जैनग्रन्थमाला' तथा 'नाइटा कलाभवन' की स्थापना की है।
हासिक जैनक व्यसंग्रह मुग्न्य है । ये ग्रन्थ दामिक हासे
अत्यन्त महत्व के हैं। ये मात्र ग्रन्थ आपके अनेक वर्षांके श्रापके संग्रह में १००० के लगभग हस्तलिखित प्रतिये
गद अन्वेषण और परिश्रमके फल है। भारत के प्राय: ५००० के लगभग मुद्रित ग्रंथ हैं तथा अन्य प्राचीन सामग्री।
मभी हिन्दी माहित्यिको ऐतिहानिकाच पगनत्याचाोंने श्राप यथा 'चत्रों, सिक्कों आदि का भी अच्छा संग्रह है। ये श्राप
के ग्रन्यांकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। १ प्राचीन पंचाग, गजामहाराजाओंके, ग्वाम रुका ओसवाल वंशावलिये ग्राद महत्वपूर्ण सामग्री ।
महावीर-उपदेशावतार (लेखक--पं० अजितकुमार जैन शास्त्री )
स भारत व गुन्धराको जो प्रगणित विश्ववंद्य मानवजीवनको उन्मन बना देनेवाली यौवन दशाने * महान चारमाएँ उत्पन्न करने का सौभाग्य प्राप्त राजपुत्र महावीरक हृदय प्रापन पर रनमात्र भी अधिकार
है वह अन्य किसी देशको नहीं मिल सका। न जमा पाया । जगतकी विश्वमोहिनी विभूतियोंने उनके । जगतको पवित्र अहिंमाका दिग्य सन्देश देने प्रचलचित्तको लेशमात्र भी प्रभावित न किया । अतएव
वाले भगवान महावीर भी इसी भारतभूमि अन्य प्राणधारियोंको बन्धनसे छहाने वाले महावीर प्रभु पर मगध देशमें अवतरित हुए थे । कुंडनपुरक सजा म्वयं विवाह बन्धनमें न बँधे श्रीर ३० वर्ष यौवन काल में सिद्धार्थकी रानी त्रिशलाकी कुक्षिमे इस अनुग्म ज्योतिधारक ही राजविभूतिको ठुकर। कर गृह जन्जाल मे अलग होगये. रस्नका प्रादुर्भाव हुश्रा था।
इस आदर्शस्यागने भगवान महावीरकी ओर संसारका