Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
अन्योन्यस्नेह प्रतिबद्धाः, अन्योन्यं = परस्परं स्नेहेन रागादिरूपेण प्रतिबद्धाः = एकी भावं गताः । उक्तञ्च
" स्नेहाभ्यक्तशरीरस्य रेणुना श्लिष्यते यथा गात्रम् । रागद्वेपक्लिनस्य कर्मबन्धो भवत्येवम् " ॥ १ ॥ इति ।
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स्पर्शनामात्र से परस्पर में स्पृष्ट थे इसी कारण ये दोनों पीछे गाढतर बंध से आपस में संबद्ध हो गये हैं क्या ? अन्नमन्नमो गाढा का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार लोहे के गोले में अग्नि सब तरफ से प्रविष्ट हो जाती है उसी तरह से कर्मपरमाणु आत्मा के साथ और आत्मा कर्मपरमाणुओं के साथ लोली भाव को प्राप्त हो जाता है क्या ? लोलभाव का तात्पर्य है एकमेक हो जाना । जैसे अयोगोलक (लोहेका गोला) और अयोगोलक (लोहे के गोले) में प्रविष्ट अग्नि परस्पर में एकमेक हमजाते हैं, उसी प्रकार क्या आत्मा और कर्मपरमाणु परस्पर में एकमेक हो जाते हैं क्या ? | ये आपसमें स्नेहप्रतिबद्ध हैं क्या ? यहां स्नेह से तात्पर्य रागादिरूप स्नेह (चिकनाहट) से है। कहा भी है- " स्नेहाभ्यक्त० इति ।
जिस व्यक्तिका शरीर तेल आदिसे चिकना होता है तो जैसे उसका शरीर चिकना होने के कारण धूलि आदिसे, विशेषरूप से आश्लिष्ट हो जाता है, अर्थात् उस पर धूलि आदि के कण आकर चिपक जाते हैं उसी प्रकार जब आत्मा रागद्वेष आदिरूप स्नेह से चिकना बन जाता है तो उसके साथ भी कर्मों का बंध हो जाता है, अर्थात् कर्मपरमाणु જ પરસ્પરમાં પૃષ્ટ હતા. તેએ પાછળથી ગાતર અધ વડે આપસમાં ( परस्परमां ) सगद्ध था गया हे जरा ? " अन्नमन्नमो गाढा " नुं तात्पर्य આ પ્રમાણે છે. જેમ લેાઢાના ગાળામાં બધી ખાજુએથી અગ્નિપ્રવેશી શકે છે, તેમ ક પરમાણુએ આત્માની સાથે અને આત્મા ક પરમાણુની સાથે बोसीभूत (मेऽभेङ थवा पागु) थाय छे शु? नेवी रीते आयोगोलक (सोढानोगोणी) मने आयोगोलक ( सोढाना गोणा) मां प्रवेशेन अग्नि परस्परमां मे भे થઇ જાય છે એજ પ્રમાણે શુ` આત્મા અને ક પરમાણુએ પરસ્પરમાં એકમેક यह लय छे ? शु ते परस्पर स्नेह प्रतिमद्ध छे ? अड्डी " स्नेडु " नो अर्थ रागादि३य स्नेह (श्री अश) समन्वा. उधुं पशु छे " स्नेहाभ्यक्त० " त्याहि. જ્યારે કાઈ વ્યક્તિનું શરીર તેલ વગેરેથી ચીકણુ` થયું હાય ત્યારે તે વ્યક્તિના શરીર ઉપર ધૂળ વગેરેનાં રજકણા આવીને ચોંટી જાય છે. એજ પ્રમાણે જ્યારે આત્મા રાગદ્વેષ રૂપ રનેહથી ચીકણા હોય છે ત્યારે તેની સાથે કુર્માના તીવ્ર બંધ થાય છે. એટલે કે આત્મપ્રદેશની સાથે કમ પરમાણુએ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨