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श्रीमद राजचन्द्र
पुष्पमाला १ रात्रि बीत गई, प्रभात हुआ, निद्रासे मुक्त हुए । भावनिद्राको दूर करनेका प्रयत्न करें। २ व्यतीत रात्रि और अतीत जीवन पर दृष्टि डाल जायें।
३ सफल हुए समयके लिये आनन्द माने, और आजका दिन भी सफल करें। निष्फल हुए दिनके लिये पश्चात्ताप करके निष्फलताको विस्मृत करें।
४. क्षण क्षण करके अनन्त काल व्यतीत हुआ, तो भी सिद्धि नही हुई। ५ यदि तुझसे एक भी कृत्य सफल न बन पाया हो तो बार-बार शरमा ।
६ यदि तुझसे अघटित कृत्य हुए हो तो लज्जित होकर मन, वचन और कायके योगसे उन्हे न करनेकी प्रतिज्ञा ले। ७ यदि तू स्वतत्र हो तो ससार-समागममे अपने आजके दिनके निम्नलिखित विभाग कर
(१) १ प्रहर-भक्तिकर्तव्य । (२)१ प्रहर-धर्मकर्तव्य । (३) १ प्रहर-आहारप्रयोजन । (४) १ प्रहर-विद्याप्रयोजन । (५) २ प्रहर-निद्रा। (६) २ प्रहर-ससारप्रयोजन ।
८प्रहर ८ यदि तू त्यागी हो तो त्वचारहित वनिताके स्वरूपका विचार करके ससारकी ओर दृष्टि कर | ९ यदि तुझे धर्मका अस्तित्व अनुकूल न आता हो तो नीचेके कथन पर विचार कर देख
(१) तू जिस स्थितिको भोग रहा है वह किस प्रमाणसे ? (२) आगामी कालकी बातको क्यो नही जान सकता ? (३) तू जो चाहता है वह क्यो नही मिलता ?
(४) चित्रविचित्रताका प्रयोजन क्या है ? . १०. यदि तुझे धर्मका अस्तित्व प्रमाणभूत लगता हो, और उसके मूल तत्त्वमे आशका हो तो नीचे कहता हूँ
९१ सर्व प्राणियोमे समदृष्टि,१२ अथवा किसी प्राणोको प्राणरहित नही करना, शक्तिसे अधिक उससे काम नही लेना। १३ अथवा सत्पुरुष जिस मार्ग पर चले, उस मार्गको ग्रहण कर ।
१४ मूल तत्त्वमे कही भी भेद नही है, मात्र दृष्टिमे भेद है, ऐसा मानकर और आशयको समझ. कर पवित्र धर्ममे प्रवृत्ति कर।
१५ तू चाहे जिस धर्मको मानता हो, मुझे उसका पक्षपात नही है। मात्र कहनेका तात्पर्य यह है कि जिस मार्गसे संसारमलका नाश हो, उस भक्ति, उस धर्म और उस सदाचारका तू सेवन कर.। ..
१६ तू चाहे जितना परतत्र हो तो भी मनसे पवित्रताका विस्मरण किये बिना आजका दिन रमणीय कर।
१७. यदि आज तू दुष्कृतकी ओर जा रहा हो, तो मरणका स्मरण कर ।