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हो जाता है। किन्तु उनका अस्तित्व....? पवन का एक झोंका आते ही वे कहीं-के-कहीं बिखर जाते हैं और क्षण भर में तो उनका अस्तित्व नामशेष हो जाता है। बस ! यही हालत मानव शरीर की है। ... आयुष्य कर्म की समाप्ति रूप पवन के एक झोंके से ही यह शरीर नष्ट हो जाता है।
पूज्य उपाध्यायजी महाराज सर्वप्रथम देह की अनित्यता बतला रहे हैं, इसका मुख्य कारण है....देह की अत्यधिक ममता।
आहार से अधिक धन पर मूर्छा, धन से अधिक पुत्र पर, पुत्र से अधिक पत्नी पर और पत्नी से भी अधिक मूर्छा देह पर होती है। • बम्बई में चंपक भाई का एक समृद्ध छोटा सा परिवार रहता था। परिवार में कुल चार ही सदस्य थे। पति-पत्नी और एक पुत्र व एक पुत्री। उस युगल को शादी किये चार ही वर्ष हुए थे।
एक दिन चंपक भाई ने अपने मित्रों को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रण दिया। उसने वातानुकूलित कमरे में सभी मित्रों को सोफे पर बिठाया। थोड़ी ही देर में नाश्ते की प्लेटें
आने लगीं। सभी मित्रों के साथ चंपक भाई नाश्ता प्रारम्भ कर ही रहे थे कि दुकान से मुनीम का फोन आया-"प्राप शीघ्र ही पधारिये, बाजार में भावों में बड़ी तेजी आ गई है। लाखों का मुनाफा हो सकता है।"
मुनाफा और वह भी लाखों का....सुनते ही चंपक भाई ने मित्रों को कहा-'मैं दो मिनिट में दुकान जाकर आता हूँ।
शान्त सुधारस विवेचन-१५