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करता हो तो नाव को बचाने के लिए सर्वप्रथम छिद्रों को बंद करना अनिवार्य है। इसी प्रकार जीवात्मा में भी जिन-जिन मार्गों से कर्मों का आगमन होता हो, उन मार्गों को रोकना अत्यन्त अनिवार्य है।
'नवतत्त्व' में संवर तत्त्व के ५७ भेद बताये गए हैं। उनके स्वरूप को भी समझ लेना अनिवार्य है
५ समिति, ३ गुप्ति , १० यतिधर्म, १२ भावना, २२ परीषह और ५ चारित्र ।
(1) पाँच समिति समिति अर्थात् सम्यग् व उपयोगपूर्वक प्रवृत्ति । इसके ५ भेद हैं
१. ईर्या समिति-साढ़े तीन हाथ भूमि पर दृष्टि डालते हुए यतनापूर्वक चलना और किसी प्रकार के जीव की हिंसा न हो जाय, इसको सावधानी रखना, इसे ईर्या समिति कहते हैं।
२. भाषा समिति-हित, मित, सत्य, प्रिय वचन उपयोग (सावधानी) पूर्वक बोलने को भाषा समिति कहते हैं।
३. ऐषणा समिति-शास्त्र में निर्दिष्ट विधि के अनुसार गोचरी के ४२ दोषों के त्यागपूर्वक आहार ग्रहण करने को ऐषणा समिति कहते हैं।
शान्त सुधारस विवेचन-२३७