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प्रवृत्तिशील बन जाओ, जिससे सनातन मोक्ष-सुख प्राप्त हो जायेगा ॥१०॥
विवेचन तीन गुप्ति का पालन करो
मन, वचन और काया की अशुभ प्रवत्ति को जीतना अत्यन्त ही कठिन काम है। उनको जीतने का हथियार 'गुप्ति की साधना' है।
मनोगुप्ति द्वारा मन को, वचन-गुप्ति द्वारा वचन को और काय-गुप्ति द्वारा काया को जीता जा सकता है।
मनोगुप्ति को धारण करने से मन के अशुभ विचार रुक जाते हैं और मन को शुभ विचारों में जोड़ा जा सकता है ।
अशुभ ध्यान में जुड़ा मन तो आत्मा का अधःपतन ही करा सकता है।
बेचारा तन्दुल मत्स्य', जिसको सोचने के लिए मन तो मिला, किन्तु अशुभ ध्यान करने के कारण उसे ७वीं नरक-भूमि का वासी बनना पड़ा।
ठीक ही कहा है"मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।"
मनुष्य का मन उसके बंध और मोक्ष का कारण है। मनोगुप्ति से वशीभूत मन मोक्ष का और स्वच्छन्द मन कर्मबन्ध का कारण बनता है।
शान्त-१७
शान्त सुधारस विवेचन-२५७