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उदाहरण स्वरूप पानी एक होते हुए भी 'यह गिलास का पानी है, यह लोटे का पानी है, यह मटके का पानी है, यह बर्तन का पानी है', इत्यादि कहा जाता है। अथवा सब लकड़ियाँ समान होते हुए भी 'यह नीम की लकड़ी है, यह बबूल की लकड़ी है, यह बड़ की लकड़ी है', इत्यादि कहा जाता है, इसी प्रकार हेतुओं के भेद से निर्जरा के भी बारह भेद किए गए हैं।
काष्ठोपलादिरूपारणां, निदानानां विभेदतः । वह्निर्यथैकरूपोऽपि, पृथग्रूपो विवक्ष्यते ॥ १११ ॥
__ (अनुष्टुप) निर्जरापि द्वादशधा, तपोभेदैस्तथोदिता। कर्मनिर्जरणात्मा तु, सैकरूपैव वस्तुतः ॥ ११२ ॥
(अनुष्टुप्) अर्थ-जिस प्रकार अग्नि एक ही प्रकार की होती हुई भी काष्ठ तथा पत्थर आदि हेतुओं के भेद से अलग-अलग भी कही जाती है ।। १११ ॥
अर्थ-इसी प्रकार तप के बारह प्रकार होने से निर्जरा भी बारह प्रकार की कही जाती है, लेकिन कर्म-क्षय की दृष्टि से तो निर्जरा एक ही प्रकार की है ।। ११२ ।।
विवेचन निर्जरा का भेदोपचार प्राग का स्वरूप एक ही होता है और उसका 'जलाने' का
गान्त सुधारस विवेचन-२७७