Book Title: Shant Sudharas Part 01
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 325
________________ (३) सूक्ष्म क्रियाश्रप्रतिपाती - मन, वचन तथा काया की सर्व प्रवृत्तियों का निरोध करना । (४) समुच्छिन्न क्रियाश्रनिवृत्ति - आत्मप्रदेशों के सर्वथा निष्कम्प होने पर यह ध्यान होता है, इस ध्यान का काल मात्र ५ ह्रस्वाक्षर (अ, इ, उ, ऋ और लृ ) के उच्चारण जितना है । 6. कायोत्सर्ग -- कायोत्सर्ग अर्थात् काया के व्यापार का त्याग करना । अनादिकाल से स्वकाया पर रही मूर्च्छा के त्याग का अभ्यास कायोत्सर्ग के द्वारा किया जाता है । कायोत्सर्ग में 'नमस्कार - महामंत्र' आदि का ध्यान भी किया जाता है । शमयति तापं गमयति पापं, रमयति मानस हरति तप विमोहं इति हंसम् । दूरारोहं, विगताशंसम् || विभा० १२२ ॥ B अर्थ - श्राशंसा रहित तप ताप को शान्त करता है, पाप को दूर करता है, मन रूपी हंस को खुश करता है और दुष्कर मोह को हर लेता है ।। १२२ ।। विवेचन तप की महिमा तप की महिमा अकथनीय है । निराशंस भाव से जो तप किया जाता है, उससे तन के ताप और मन के सन्ताप दूर हो शान्त सुधारस विवेचन- ३०३

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