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जाते हैं । तप में इच्छापूर्वक आहार आदि लालसाओं का त्याग होता है, अतः स्वतः मानसिक शान्ति का अनुभव होता है । जहाँ लोभ और लालसा है, वहाँ प्रशांति रहती है । जहाँ त्याग और सन्तोष हैं, वहाँ शान्ति रहती है । जिनाज्ञापूर्वक जो तप किया जाता है, उससे आत्मा उपशान्त ही बनती है । जिनाज्ञा की उपेक्षापूर्वक किये गए तप में क्रोध आदि देखने को मिलता है, परन्तु जहाँ जिनाज्ञापूर्वक तप है, वहाँ तो महासागर सी शान्ति काही अनुभव होता है ।
तप से पाप का भी विलय होता है । भयंकर से भयंकर पापी भी तप के द्वारा अपने पापों का नाश कर आत्मशुद्धि कर लेता है । शास्त्रों में ऐसे अनेक दृष्टांत उपलब्ध हैं ।
तप मानस-हंस को परम आनन्द देने वाला है ।
देह के आहार के लिए अनेक जीवों की हिंसा करनी पड़ती है। तप के द्वारा आहार का त्याग हो जाने से छः काय के जीवों को अभयदान दिया जाता है । जीवों को अभयदान देने से स्वतः ही आत्मा में परम शान्ति और श्रानन्द की अनुभूति होती है ।
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संयम - कमला - कार्मरणमुज्ज्वल
शिव
सुख सत्यंकारम् । चिन्तामणिमाराधय,
चिन्तित
तप
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इह
वारंवारम् ॥ विभा० १२३ ॥
अर्थ - तप संयम रूपी लक्ष्मी का वशीकरण है । निर्मल
शान्त सुधारस विवेचन- ३०४