________________
(ई) निदान-धर्म के फलस्वरूप संसार के सुख आदि पाने का संकल्प करना।
उपर्युक्त आर्त और रौद्रध्यान अशुभ हैं। इनके ध्यान से प्रात्मा को दुर्गति होती है।
2. शुभध्यान-इसके दो भेद हैं-(१) धर्मध्यान और (२) शुक्लध्यान ।
(इ) धर्मध्यान-इसके चार प्रकार हैं
(१) प्राज्ञाविचय-परमात्मा की प्राज्ञा तथा उसके माहात्म्य का चिन्तन करना।
(२) अपायविचय-राग-द्वेष से होने वाले अनिष्टों का चिन्तन करना।
(३) विपाकविचय-कर्म के शुभ-अशुभ फल का चिन्तन करना।
(४) संस्थानविचय–विश्व के स्वरूप का चिन्तन करना।
(ई) शुक्लध्यान--इसके भी चार भेद हैं
(१) पृथक्त्ववितर्क सविचार-श्रुतज्ञान के आलम्बन से जड़ तथा चेतन की विभिन्न पर्यायों का चिन्तन करना।
(२) एकत्ववितर्क निविचार-श्रुतज्ञान के पालम्बन द्वारा प्रात्मादि द्रव्य के एक ही पर्याय का चिन्तन करना, इस ध्यान की पूर्णाहुति के साथ ही प्रात्मा घातिकर्मों का क्षय कर केवलज्ञान प्राप्त करता है।
शान्त सुधारस विवेचन-३०२