Book Title: Shant Sudharas Part 01
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 304
________________ जिनाज्ञा के पालनपूर्वक जो सम्यग् तप किया जाता है, उसमें प्रचण्ड ताकत पैदा हो जाती है। जिस प्रकार इन्द्र के वज्र में पर्वत को भेद डालने की, उसे चूर-चूर कर देने की ताकत रही हुई है, उसी प्रकार तप में भी सर्व शक्तिमान निकाचित कर्मों को भी जलाकर भस्मीभूत कर देने की ताकत रही हुई है। इस अद्भुत तप को हमारा कोटि-कोटि वन्दन हो। 0 किमुच्यते सत्तपसः प्रभावः, कठोरकर्माजितकिल्बिषोऽपि । दृढप्रहारीव निहत्य पापं , यतोऽपवर्ग लभतेऽचिरेण ॥ ११४ ॥ (उपजाति) अर्थ-सम्यग् तप के प्रभाव की तो क्या बात करें ? इसके प्रभाव से तो कठोर और भयंकर पाप को करने वाले दृढ़प्रहारी जैसे भी शीघ्र मोक्ष को प्राप्त कर जाते हैं ।। ११४ ॥ विवेचन तप का प्रभाव अरे ! आप इस तप के अद्भुत माहात्म्य के बारे में मुझसे प्रश्न कर रहे हो ? प्रोह ! तप की शक्ति के बारे में आपके हृदय में सन्देह है ? तो मेरी एक ही सलाह है, जाकर दृढ़प्रहारी की आत्मा को पूछ लो, अथवा उनके अद्भुत चरित्र को पढ़ लो । शान्त सुधारस विवेचन-२८२

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