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जिस प्रकार चुम्बक में दूर रहे लोहे को खींचकर अपने निकट लाने की ताकत है, उसी प्रकार तप में भी दूर रहे पुण्य को खींचकर नजदीक लाने की ताकत है और उस पुण्य के फलस्वरूप सभी वांछित-मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।
शुभ संकल्प को पूर्ण कराने में तप रामबाण औषध समान है।
तप में दुनिया के प्रत्येक सुख और यावत् मोक्ष का सुख देने का सामर्थ्य रहा हुआ है। परन्तु तप के फलस्वरूप संसार के सुखों की इच्छा करना भयंकर हानिकर है। सम्भूतिमुनि ने अपने तप के फलस्वरूप चक्रवर्ती पद की याचना की। इस याचना-निदान से उसे चक्रवर्ती का पद मिल तो गया किन्तु अन्त में उसे भयंकर ७वीं नरक भूमि में जाना पड़ा। जो गेहूँ बोयेगा, उसके साथ घास-चारा तो उगने ही वाला है। गेहूँ के लिए ही गेहूँ बोये जाते हैं, घास-चारे के लिए नहीं ।
इसी प्रकार मोक्ष की प्राप्ति के उद्देश्य से ही सम्यग् तप धर्म का आचरण करने का है। मोक्ष के उद्देश्य से की गई साधना के फलस्वरूप सांसारिक भोग-सुख भी मिलेंगे ही। सांसारिक सुख तो तप का आनुषंगिक फल है, तप का मुख्य फल तो मोक्ष है।
तप में समस्त वांछात्रों को पूर्ण करने का सामर्थ्य रहा हुआ है किन्तु हमें वांछाएँ ऐसी ही रखनी चाहिये जो हमें मोक्षमार्ग में आगे बढ़ाने वाली हो ।
धर्मी के मनोरथ कैसे होते हैं ? यह आप जानते हैं ?
शान्त सुधारस विवेचन-२६३