Book Title: Shant Sudharas Part 01
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 321
________________ ६. अनवस्थाप्य-जब तक अपराध का प्रायश्चित्त न करे तब तक महाव्रत प्रदान नहीं करना । १०. पारांचित-साध्वी के शील भंग प्रादि महापाप करने पर उसके दण्ड के लिए बारह वर्ष तक गच्छ बाहर रहकर महाशासन प्रभावना करने के बाद पुनः दीक्षा प्रदान करना पारांचित प्रायश्चित्त है। ___2. विनय-विनय अर्थात् गुणगान, व्यक्ति का बहुमानआदर आदि करना। इसके सात प्रकार हैं (१) ज्ञान विनय-ज्ञान तथा ज्ञानी की बाह्य से सेवा करना, अन्तर से प्रीति व बहुमान रखना । इसके ५ भेद हैं(१) भक्ति (२) बहुमान (३) भावना (४) विधिग्रहण और (५) अभ्यास। (२) दर्शन विनय-इसके मुख्य दो भेद हैं-(१) शुश्रूषा विनय और (२) अनाशातना। (१) शुश्रूषा विनय-देव-गुरु का सत्कार, सम्मान, अभ्युत्थान, प्रासन परिग्रहण, आसनदान, कृतिकर्म, अंजलिग्रहण, सन्मुखागमन, पश्चाद् गमन तथा पर्युपासना आदि करना । (२) अनाशातना विनय-तीर्थंकर, धर्म, आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, कुल, गण, संघ, सांभोगिक समनोस, सार्मिक, मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान इत्यादि की आशातना नहीं करना तथा उनकी भक्ति और बहुमान करना। शान्त सुधारस विवेचन-२६६

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