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अच्छा ! तो दृढ़प्रहारी की रोमांचक कथा अपने शब्दों में मैं ही सुना दूँ
नहीं थे ।
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जाति से तो वह ब्राह्मरण था, किन्तु कर्म उसके वह अत्यन्त निष्ठुर - क्रूर और दुष्ट था संगति से उसका जीवन बरबादी के तट पर आ उसके प्रहार में प्रचण्ड शक्ति थी, एक ही प्रहार में वह मजबूत प्राणी को भी मौत के घाट उतार देता था । इसीलिए उसका नाम प्रसिद्ध हो गया 'दृढ़प्रहारी' |
ब्राह्मण के दुष्टों की
पहुँचा था ।
एक दिन कुशस्थल नगरी में महोत्सव का प्रसंग था । घर-घर में कुछ-न-कुछ मिष्ठान्न बनाया गया था ।
उस नगरी में एक गरीब ब्राह्मण परिवार भी था । गरीब के घर मिष्ठान्न कहाँ से ? लेकिन बालक ने आज मिष्ठान्न की जिद कर ली थी, अतः ब्राह्मणी पास-पड़ोस से दूध, चावल तथा शक्कर आदि मांगकर ले आई और उसने खीर बना दी ब्राह्मरण स्नान करने के लिए नदी के तट पर चला गया था ।
दृढ़प्रहारी उस ब्राह्मण के घर में घुसा और क्षीरान्न का पात्र लेकर भागने लगा । बच्चों ने जाकर ब्राह्मण को शिकायत की तो ब्राह्मण कुल्हाड़ी लेकर आया । दृढ़प्रहारी भाग रहा था, बीच में एक गाय श्रा गई, तो उसने उसके पेट में तलवार भोंककर उसकी हत्या कर दी और समीप में आए ब्राह्मण को भी खत्म कर दिया। पति की हत्या देख गर्भवती ब्राह्मणी रोनेचिल्लाने लगी और उसे गालियाँ देने लगी । क्रोध से अन्धे बने दृढ़प्रहारी ने उस गर्भवती ब्राह्मणी को भी खत्म कर दिया ।
शान्त सुधारस विवेचन- २८३