Book Title: Shant Sudharas Part 01
Author(s): Ratnasenvijay
Publisher: Swadhyay Sangh

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Page 312
________________ नवमभावनाष्टकम् विभावय विनय तपो महिमानं , बहुभव - सञ्चितदुष्कृतममुना । लभते लघु लघिमानम् , विभावय विनय तपो महिमानम् ॥विभा० ११७॥ अर्थ-हे विनय ! तप की महिमा का तू चिन्तन कर । इस तप से बहुत भवों में संचित किए गए पाप शीघ्र ही अत्यन्त कम हो जाते हैं। हे विनय ! तप की महिमा का तू विचार कर ॥ ११७ ।। विवेचन तप से कर्मनाश पूज्य उपाध्याय श्री विनयविजयजी म. आत्मसम्बोधन करते हुए फरमाते हैं कि हे विनय ! तू तप की महिमा का जरा विचार कर। इस तप के प्रभाव से सैकड़ों भवों में इकट्ठे हुए कर्म भी तत्काल कमजोर हो जाते हैं। भगवान महावीर परमात्मा ने मात्र १२३ वर्ष की तपःसाधना द्वारा गत भवों में अजित समस्त पापों का क्षय कर दिया था। शान्त सुधारस विवेचन-२६०

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