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अत्यन्त दृढ़ता और धैर्यपूर्वक बाह्य और अभ्यन्तर तप का प्राचरण किया जाय तो सभी बाह्य और अन्तरंग विघ्न समाप्त हो जाते हैं।
चक्रवर्ती भी छह खण्ड को जीतने के लिए अट्ठम तप पूर्वक देवता की आराधना करते हैं जिसके प्रभाव से वे आसानी से छह खण्ड पृथ्वी को जोतकर चक्रवर्ती पद प्राप्त कर लेते हैं।
ठीक ही कहा हैते शुछ संसार मां रे,
तप थी जे नवि होय । जे जे मन मां कामीए रे,
सफल फले सवि तेह । तप के प्रभाव से सभी बाह्य और अभ्यन्तर विघ्न शान्त हो जाते हैं।
भरत महाराजा ने गत भवों में तप व संयम की सुन्दर साधना की थी। अन्तिम भव में भरत महाराजा चक्रवर्ती बने और चक्रवर्ती के भव में छह खण्ड के अधिपति होते हुए भी वे सर्वथा अलिप्त थे। इसी कारण एक बार स्नानघर में अन्यत्व भावना के भावन में इतने आगे बढ़ गए कि उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हो गई।
तप के प्रभाव से अनेक लब्धियों और सिद्धियों की भी प्राप्ति होती है।
सनत्कुमार चक्रवर्ती के शरीर में भयंकर रोग हो गए थे,
शान्त सुधारस विवेचन-२८८