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वचनगुप्ति का पालन करने से मिथ्या वार्तालाप, विकथा तथा निन्दा आदि का त्याग हो जाता है, जिससे आत्मा अनेक अनर्थकारी पापों से बच जाती है।
कायगुप्ति के पालन से आत्मा, काया की विविध कुचेष्टानों से बच जाती है। अन्यथा काया से हिंसादि अनेक पापों की प्रवृत्ति हो जाती है। . मन, वचन और काया के योग अत्यन्त अजेय हैं। गुप्ति के प्रचण्ड हथियार से ही उन्हें जीता जा सकता है । एवं रुद्धष्वमलहृदयरास्रवेष्वाप्तवाक्य
श्रद्धा-चञ्चत्सितपट-पटुः सुप्रतिष्ठानशाली । शुद्धर्योग वनपवनैः प्रेरितो जीवपोतः , स्रोतस्तीर्वा भवजलनिधेर्याति निर्वाणपुर्याम् ॥१०१॥
(मन्दाक्रान्ता) अर्थ-निर्मल हृदय के द्वारा प्रास्रवों को रोकने पर, प्राप्त पुरुषों के वाक्यों में श्रद्धा रूपी श्वेत पट्ट से सन्नद्ध, सुप्रतिष्ठित जीव रूपी नाव शुद्ध योग रूप वेगवर्द्धक पवन से प्रेरित होता है और संसार-सागर के जल को पार कर निर्वाणपुरी में पहुँच जाता है ।। १०१ ॥
विवेचन मुक्तिनगर पहुँचने की नाव
इस प्रकार प्रास्रवों का रोध करने के बाद आत्मा रूपी नाव का मोक्ष-नगरी में पहुँचना सरल हो जाता है ।
शान्त सुधारस विवेचन-२५८