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अष्टमभावनाष्टकम्
शृणु शिवसुख-साधन-सदुपायम् ,
___शृणु शिवसुख-साधन-सदुपायम् । ज्ञानादिक - पावन - रत्नत्रय
परमाराधनमनपायम् ॥शृणु० १०२॥
अर्थ-शिवसुख की प्राप्ति के साधनभूत सम्यग् उपायों का श्रवण कर। शिवसुख-प्राप्ति के साधनभूत सम्यग् उपायों का श्रवण कर। यह (उपाय) ज्ञान आदि पवित्र रत्नत्रयी की आराधना स्वरूप है, जो अपाय रहित है ।। १०२ ॥
विवेचन मुक्ति का उपाय : रत्नत्रयी की साधना
पूज्य उपाध्यायजी म. फरमाते हैं कि हे प्रिय पात्मन् ! मैं तुझे मोक्ष-प्राप्ति का उपाय बतलाता हूँ, इस उपाय का तू ध्यानपूर्वक श्रवण कर। ग्रन्थकार महर्षि इस बात को पुनःपुनः दोहराते हैं और कहते हैं कि इस को तू ध्यानपूर्वक सुन ।
परम आनन्द की प्राप्ति का एकमात्र उपाय रत्नत्रयी की आराधना है। वाचकवर्य उमास्वातिजी म. ने 'तत्त्वार्थ सूत्र' के
शान्त सुधारस विवेचन-२६.