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निर्जरा भावना
यनिर्जरा द्वादशधा निरुक्ता ,
तद् द्वादशानां तपसां विभेदात् । हेतुप्रभेदादिह कार्यभेदः, स्वातन्त्र्यतस्त्वेकविधव सा स्यात् ॥ ११० ॥
(इन्द्रवज्ञा) अर्थ-बारह प्रकार के तप के भेद के कारण निर्जरा के भी बारह प्रकार कहे गये हैं। हेतु के भेद से यहाँ कार्य में भेद है, परन्तु स्वतन्त्र दृष्टि से विचार करें तो निर्जरा एक ही प्रकार की होती है ॥ ११० ॥..
विवेचन निर्जरा के १२ भेद
जनदर्शन में नौ तत्त्वों के अन्तर्गत निर्जरा' को एक स्वतन्त्र तत्त्व के रूप में माना गया है। 'निर्जरा' अर्थात् प्रात्मा पर लगी हुई कर्म रूपी धूल का झड़ना। अनादिकाल से अपनी आत्मा कर्म के सम्बन्ध में है।
शान्त सुधारस विवेचन-२७३
शान्त-१८ ।