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संयम - योगैरवहितमानस
शुद्धया चरितार्थय कायम् । नाना-मत-रुचि-गहने भुवने ,
निश्चिनु शुद्ध-पथं नायम् ॥ शृणु० १०६ ॥ अर्थ-निर्मल मानसिक शुद्धि के साथ संयम योगों के द्वारा काया को चरितार्थ करो। नाना प्रकार के मत-मतान्तरों की रुचि से अत्यन्त गहन इस संसार में न्यायपूर्वक जो शुद्ध पथ है, उसका निश्चय करो ॥ १०६ ॥
विवेचन संयम-साधना द्वारा काया को सफल करो ___ मानसिक शुद्धिपूर्वक पवित्र संयमयोगों के द्वारा अपनी काया को सफल करो। यह जीवन अत्यन्त ही दुर्लभता से प्राप्त हुआ है। यह मानवदेह तो अत्यन्त ही कीमती है अतः क्षणिक भोगों के द्वारा इस देह-रत्न को समाप्त न करो।
क्या काग को उड़ाने के लिए बहुमूल्य कीमती रत्न फेंका जाता है ?
बस, इसी प्रकार से क्षणिक भोगों के पीछे इस जीवन को बरबाद करना केवल मूर्खता ही है। आज तक अनन्त जन्मों में यही मूर्खता करते आए हैं, लेकिन इस जीवन में सावधान बन जाना है। अन्यथा विजय की बाजी अपने हाथों में नहीं रहेगी।
काया की विलासिता को वश करने का एकमात्र उपाय हैसंयम की साधना।
शान्त सुधारस विवेचन-२६६