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अर्थ-क्रोध, मान और माया के साथ विषय के विकारों को दूर कर दो और बात ही बात में लोभ शत्रु को जीत कर कषायमुक्त संयम गुण को भजो ।। १०३ ।।
विवेचन कषायों पर विजय प्राप्त करो ____ संयम और संवर का घनिष्ट सम्बन्ध है। जहाँ संयम है, वहाँ संवर रहेगा ही। यह संयम कषायरहित अवस्था है। संयम द्वारा कषायों का उपशमन व क्षय किया जाता है। अतः संवर की साधना के लिए संयम को भजना ही श्रेयस्कर है।
ग्रन्थकार महर्षि संयम की सेवा का उपाय भी बतला रहे हैं। वे कहते हैं कि 'अत्यन्त कटु विपाक को देने वाले इन्द्रिय के विषयों से तू दूर हट जा। उनका लेश भी संग मत कर । उनके लुभावने आकर्षण में मत फंस। इन विषयों का बाह्य आडम्बर ही आकर्षक है, किन्तु इनके चंगुल में फँसने के बाद आत्मा को अत्यन्त भयंकर फल भोगने पड़ते हैं, अतः इनसे सावधान रह।
इसके साथ क्रोध को दूर कर दे, मान को दूर भगा दे, माया की तो छाया भी भयंकर है और लोभ तो सर्व दुर्गुणों की जड़ है, उससे तो सौ कोस दूर रहना ही श्रेयस्कर है।
इस पर विषय और कषायों का जय ही संयम का वास्तविक साधन है। जब तक विषयों का राग और कषायों की आग जीवित रहेगी तब तक संयम की समाधि का पास्वादन नहीं हो सकेगा।
शान्त सुधारस विवेचन-२६२