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अर्थ-क्षमा से क्रोध को, नम्रता से मान को, निर्मल सरलता से माया को तथा अति उच्च दीवार वाले बाँध (सेतु) सन्तोष से लोभ को दबा दो ।। ६8 ।।
विवेचन कषायों का रोध करो
पूज्य उपाध्यायजी म. इस गाथा में चार भयंकर रोगों की चार दवाएँ बतला रहे हैं। यदि आपको क्रोध का रोग है तो 'क्षमा' की गोली लो; आपका रोग दूर हो जाएगा। यदि मान का बुखार चढ़ गया हो तो मार्दव की दवाई लो, आपका मान तुरन्त उतर जाएगा। यदि माया का घाव लग गया है तो पवित्र आर्जव (सरलता) से उस घाव को भर दो और यदि लोभ का सिरदर्द हो तो उसे सन्तोष की गोली से उतार दो।
क्रोध रोग है तो क्षमा उसका उपचार है।
जब-जब भी क्रोध आवे, तब इस प्रकार विचार करना चाहिये
(१) कोई अपने पर गुस्सा करे तब यह विचार करें कि 'इसमें दोष किसका है ? यदि मेरी भूल है तो मुझे पुनः गुस्सा करने की क्या जरूरत है ? और यदि मेरी भूल नहीं है तो मुझे गुस्सा करने को क्या जरूरत है ? वह व्यक्ति तो गुस्सा कर स्वयं ही सजा भोग रहा है, व्यर्थ ही मैं गुस्सा कर उसकी भूल का फल क्यों भोगू?'
(२) क्रोध के प्रसंग में यह विचार करें कि 'क्रोध तो
शान्त सुधारस विवेचन-२५३