________________
आत्मा की विभाव दशा है। अतः मैं अपनी आत्मा को स्वभाव दशा से विभाव की ओर क्यों ले जाऊं ?'
(३) कोई व्यक्ति क्रोध करता है, तब यह विचार करें कि यह तो मात्र आक्रोश कर रहा है, मुझे मार तो नहीं रहा है, कोई लकड़ी से मार भी दे तो विचार करें कि मुझे जीवन से खत्म तो नहीं कर रहा है। कोई मार भी डाले तो विचार करें कि मुझे धर्म से च्युत तो नहीं कर रहा है।
(४) कोई व्यक्ति अपने पर गुस्सा करे, मारपीट करे तो विचार करें कि इसमें उस व्यक्ति का कोई दोष नहीं है, मेरे ही पूर्वकृत कर्म का दोष है।
(५) क्रोध के तात्कालिक फल का विचार करें कि क्रोध करने से शुभ ध्यान का भंग हो जाता है। क्रोध करने से चित्त की प्रसन्नता नष्ट हो जाती है। मुंह लाल हो जाता है और शरीर में अकारण कम्पन पैदा होती है ।
इस प्रकार के चिन्तन द्वारा क्रोध के प्रसंग को निष्फल करने का प्रयास करना चाहिये ।
अभिमान को जीतने का उपाय है--मृदुता-कोमलता और नम्रता। अभिमान को दूर करने का सर्वश्रेष्ठ मंत्र है-- पंच परमेष्ठी को नमस्कार और उनकी शरणागति का स्वीकार । परमेष्ठी भगवन्त क्रोधादि कषायों से सर्वथा रहित हैं और सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित हैं। ऐसे परमेष्ठी भगवन्तों के नित्य स्मरण, जाप-ध्यान से अपना अभिमान नष्ट होने लगता है ।
शान्त सुधारस विवेचन-२५४