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(5) बारह भावनाएँ १. अनित्य भावना-संसार की अनित्यता का विचार करना।
२. अशरण भावना--'संसार में मेरा कोई शरण्य नहीं है।' इस प्रकार की भावना से प्रात्मा को भावित करना ।
३. संसार भावना-संसार में आत्मा के भवभ्रमण का विचार करना।
४. एकत्व भावना-आत्मा के 'एकत्व' भाव का विचार करना।
५. अन्यत्व भावना-देहादि से प्रात्मा की भिन्नता का विचार करना।
६. अशुचिभावना-शरीर की अपवित्रता तथा मलिनता का विचार करना।
७. प्रास्रव भावना-अात्मा में कर्मों के प्रागमन-द्वारों का विचार करना।
८. संवर भावना-आत्मा में कर्म के आगमन को रोकने का चिन्तन करना।
६. निर्जरा भावना-कर्म-क्षय के उपायों का चिन्तन करना।
१०. लोकस्वरूप भावना-सचराचर जगत् के स्वरूप का विचार करना।
शान्त सुधारस विवेचन-२४६