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प्रतिज्ञा अंगीकार करने से व्यक्ति का मनोबल मजबूत हो जाता है।
कई व्यक्ति प्रतिज्ञा ग्रहण करने से डरते हैं, परन्तु यह ठीक नहीं है। क्योंकि इस प्रकार का भय मनुष्य के मनोबल को कमजोर बनाता है। प्रतिज्ञा ग्रहण करने से तो प्रतिज्ञाभंग के प्रसंग में दृढ़ रहने का बल मिलता है ।
भोजन में तीव्र आसक्ति हो तो प्रतिदिन एक-दो विगई के त्याग द्वारा उस आसक्ति पर प्रहार कर सकते हैं।
संयम से दो लाभ हैं-(१) इन्द्रियों के आस्रव का निरोध होता है और (२) अविरति के आस्रवद्वार का भी निरोध हो जाता है।
मिथ्यात्व के प्रास्रवद्वार को रोकने के लिए सम्यग्दर्शन की साधना करनी चाहिये। शास्त्रों में सम्यक्त्व की प्राप्ति के पाँच लक्षण बताये गए हैं
(१) उपशम-उपशम अर्थात् क्रोधादि कषायों का उपशमन । सम्यग्दृष्टि आत्मा में कषायों की मन्दता होती है । अनन्तानबन्धी कषाय से सम्यक्त्व का घात होता है। अतः सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए कषायों का उपशमन अवश्य करना चाहिये ।
(२) संवेग-संवेग अर्थात् मोक्ष का तीव्र अनुराग । कहा गया है कि'सुर नर सुख जे दुःख करो लेखवे, वंछे शिवसुख एक ।' अर्थात् सम्यग्दृष्टि प्रात्मा के हृदय में एकमात्र मोक्ष-सुख
शान्त सुधारस विवेचन-२५०