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(10) स्पर्शनेन्द्रिय निग्रह-मुलायम व कोमल गद्दे तथा स्त्री के स्पर्श आदि का त्याग करना ।
चार कषाय-जय
(11) क्रोध जय-क्रोध के प्रसंग में क्रोध न करना । (12) मान जय-किसी वस्तु का अभिमान नहीं करना। (13) माया जय-किसी के साथ मायाचार नहीं करना ।
(14) लोभ जय-प्राप्त वस्तु में सन्तोष धारण करना । तीन योग
(15) मन योग--मन से अशुभ चिन्तन का त्याग करना और शुभ चिन्तन करना।
(16) वचन योग-वाणी से असत्य, अप्रिय तथा अहितकर वचन-प्रवृत्ति का त्याग करना और प्रिय व पथ्य वचन बोलना ।
(17) काय योग-काया की अशुभ चेष्टाओं का त्याग करना और शुभ में प्रवृत्ति करना।
७. सत्य-प्रिय, पथ्य, सत्य और हितकर वचन बोलना ।
८. शौच धर्म-मन को पवित्र व शुद्ध रखना। मानसिक अध्यवसायों की परिणति को शुभ व शुद्ध रखना ।
६. आकिंचन्य-किसी प्रकार का परिग्रह नहीं रखना।
१०. ब्रह्मचर्य-मैथुन का त्याग कर आत्मभाव में रमण करना ब्रह्मचर्य धर्म है ।
शान्त सुधारस विवेचन-२४५