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इसके भी दो प्रकार हैं
(अ) मौनावलंबिनी वचनगुप्ति-शिरकम्पन, हस्तचालन तथा संकेत आदि का त्याग करना मौनावलंबिनी वचनगुप्ति है।
(प्रा) वागनियमिनी वचनगुप्ति-वाचना आदि के विशेष प्रसंग पर यतनापूर्वक बोलना वानियमिनी वचनगुप्ति कहलाती है।
३. कायगुप्ति--काया द्वारा अशुभ प्रवृत्ति का त्याग और शुभ में प्रवृत्ति कायगुप्ति है।
इसके दो भेद हैं
(अ) चेष्टा निवृत्ति रूप कायगुप्ति-उपसर्ग आदि के प्रसंग में भी काया को चलित न करना, चेष्टा निवृत्ति रूप कायगुप्ति कहलाती है।
(मा) सूत्र चेष्टा नियमिनी कायगुप्ति-शास्त्र में विहित मार्गानुसार गमनागमन आदि की प्रवृत्ति करना।
(3) बावीस परीषह १. क्षुधा परीषह-बयालीस दोष से रहित भिक्षा न मिलने पर भूख को सहन करने को क्षुधा परीषह कहते हैं ।
२. तृषा परीषह-जोरदार प्यास लगने पर भी दोषयुक्त पानी नहीं पीना और तृषा को सहन करना उसे तृषा परीषह कहते हैं।
३. शीत परीषह-अत्यधिक सर्दी पड़ने पर भी उसे इच्छापूर्वक सहन करना, किन्तु अग्नि आदि की इच्छा न करना।
शान्त सुधारस विवेचन-२३६