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पथिक को बाह्यखण्ड में आवास के लिए स्थान दे दिया गया।
ज्योंही भोजन का समय हुआ, राजा की ओर से एक कर्मचारी, पथिक को भोजन के लिए आमन्त्रण देने हेतु जा पहुँचा।
इस प्रकार के आमंत्रण से पथिक मन ही मन खुश हो उठा। तुरन्त ही सुन्दर वेश-भूषा पहनकर राजभवन के भोजन खण्ड की ओर आगे बढ़ा।
राजभवन में प्रवेश के साथ ही राजा की आज्ञा से एक कर्मचारी उसके पाद-प्रक्षालन के लिए तैयार था। पाद-प्रक्षालन के बाद वह भोजनखण्ड में जा पहुंचा।
भोजनखण्ड की शोभा कुछ निराली ही थी। ऋतु भी अनुकूल थी। ऊँचे प्रासन पर वह बैठा, तत्काल चांदी के थाल में पाँच पकवान व विविध खाद्य पदार्थ लाए गए और उसके सामने धर दिए गए।
उसने भोजन करना प्रारम्भ किया। मन में उसके आनन्द की सीमा नहीं थी। अत्यन्त उल्लसित हृदय से वह भोजन का प्रास्वाद ले रहा था।
भोजन के बीच वह कभी महाराजा की प्रशंसा करता, तो कभी भोजन के निर्माता रसोइयों की।
भोजन के बाद 'पाराम-गृह' में आराम के लिए सुसज्जित शय्या तैयार थी। भरपेट भोजन के बाद उसने आराम-गृह में
शान्त सुधारस विवेचन-५७