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भोजन कैसा रहा? कौनसा मिष्टान्न सबसे अधिक प्रिय रहा ?"
महाराजा के एक भी प्रश्न का जवाब उसके पास नहीं था। वह मौन खड़ा था....चेहरे पर उसके उदासोनता थी।
राजा ने कहा - "बात क्या है ? क्या सिरदर्द है ?"
पथिक ने कहा-“सिरदर्द से भी भयंकर दर्द है और वह है मृत्यु का। जब से आपने मेरे किसी अपराध के कारण फाँसी के समाचार भिजवाए, तब से आनन्द हराम हो चुका है। कुछ भी सूझ नहीं पा रहा है।
राजा ने कहा- "क्या कह रहे हो ? मैंने तो कोई फाँसी के समाचार नहीं भेजे हैं।"
राजा की यह बात सुनते ही पथिक को कुछ राहत मिली। राजा ने पूछा- 'तुम्हारे प्रश्न का प्रत्युत्तर मिल गया न ?"
पथिक ने कहा- "स्वामिन् ! मैं नहीं समझ सका हूँ, क्या कहूँ, मैं तो अपना प्रश्न ही भूल गया ?"
राजा ने कहा-"तुमने यह प्रश्न किया था कि इस वैभवविलास के बीच मैं कैसे विरक्त रहता हूँ।"
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए राजा ने कहा-"मृत्यु के समाचार सुनने के बाद तुम पर क्या प्रतिक्रिया हुई ? क्या तुम्हें भोजन के स्वाद का पता चला ? क्या शाही स्वागत ने तुम्हें आनन्द दिया?
शान्त सुधारस विवेचन-६०