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बहुत धन कमाया। एक दिन वह मथुरा जा पहुंचा और अन्त में कुबेरसेना वेश्या के यहाँ ठहर गया। कुबेरदत्त के संग से वेश्या कुबेरसेना ने एक पुत्र को जन्म दिया।
ज्ञान, ध्यान और तप की साधना से कुबेरदत्ता साध्वी को अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ, उसने कुबेरदत्त व कुबेरसेना की हालत देखी और करुणा से उसका हृदय भर आया। माँ व भाई को प्रतिबोध देने के लिए वह मथुरा जा पहुंची और कुबेरसेना के घर ठहरी। उसी समय कुबेरसेना का पुत्र रोने लगा, तभी कुबेरदत्ता साध्वी संगीत के माध्यम से उस बच्चे को कहने लगी-"तू तो मेरा भाई है, मेरा पुत्र है, मेरा देवर है, मेरा भतीज है, मेरा काका है और मेरा पौत्र है।"
___ यह सुनते ही कुबेरसेना को बड़ा आश्चर्य हुप्रा । साध्वीजी यह क्या बोल रही हैं ? उसने इसका रहस्य पूछा तब कुबेरदत्ता साध्वी ने कहा
(१) इसकी माता और मेरी माता एक है, अतः यह मेरा भाई है । (२) मेरे पति कुबेरदत्त का यह पुत्र है, अतः यह मेरा पुत्र है। (३) मेरे पति कुबेरदत्त का छोटा भाई है, अतः यह मेरा देवर है । (४) मेरे भाई कुबेरदत्त का यह पुत्र है, अतः मेरा भतीज है। (५) कुबेरदत्त मेरी माँ का पति और उसका यह भाई अतः मेरा
काका है। (६) और कुबेरसेना मेरी शोक्य है। कुबेरसेना का पुत्र कुबेरदत्त
और उसका यह पुत्र अतः मेरा पौत्र है।
शान्त सुधारस विवेचन-१११