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इच्छापूर्वक एक छोटे से पाप के त्याग की भी बहुत बड़ी महिमा है।
एक भयंकर शराबी था। शराब के बिना उसका जीना दुष्कर था। दिन-रात शराब के नशे में रहता था। उसे प्रतिदिन हर तीन घंटे बाद शराब पीने को चाहिये ।
एक दिन उसे एक महात्मा का संग हो गया। महात्मा ने धर्मोपदेश दिया और उसे कुछ नियम लेने के लिए कहा। ___शराबी ने कहा---'गुरुदेव ! आपकी बात बिल्कुल सत्य है । किन्तु शराब के बिना मेरा जीना दुष्कर है, अतः शराब तो मुझे पीनी ही पड़ती है । मैं क्या नियम ले सकता हूँ ?'
गुरुदेव ने उसे ढाढ़स बंधाते हुए कहा-'महानुभाव,' ! शराब के बिना तेरा जीना दुष्कर है, किन्तु फिर भी एक नियम तो अवश्य ले सकते हो।'
उसने कहा-'गुरुदेव ! वह कौन सा नियम ?'
गुरुदेव ने कहा-'वह है-गंठसी का नियम । जब तक कपड़े में गांठ लगी हो, तब तक कुछ खाना-पीना नहीं। (नियम की स्पष्टता करते हुए उसे समझाया गया कि खा-पी लेने के बाद कपड़े में एक गाँठ लगा लेना और जब पुनः खाना-पीना पड़े तो गाँठ खोल लेना अर्थात् जब तक कपड़े में गाँठ लगी रहे तब तक न पीना और न ही कुछ खाना ।) ___ शराबी ने यह नियम स्वीकार कर लिया और उस नियम का बराबर पालन करने लगा।
शान्त-१५
शान्त सुधारस विवेचन-२२५