________________
अर्थ-कषायों के उदय वाले और विषय के वशीभूत बने प्राणी भयंकर नरक में जाते हैं और निरन्तर जन्म, जरा और मरण के चक्र में अनन्त बार चक्कर लगाते रहते हैं ।। ६३ ।।
विवेचन विषय-कषाय से ही भव-भ्रमरण
महापुरुषों ने कहा है कि कषायों का उदय अति भयंकर होता है। क्रोध के आवेश में आत्मा विवेकभ्रष्ट हो जाती है। उसके सोचने-समझने को शक्ति समाप्त हो जाती है। आवेश में वह नहीं बोलने की बात बोल जाती है। आवेश में बोले गए शब्द तोर से भी अत्यन्त तीखे होते हैं। तीर का घाव तो
औषधोपचार से दूर हो जाता है किन्तु वचन का घाव जीवन पर्यन्त बना रहता है। ___'प्रशमरति' में वाचक उमास्वातिजी म. ने कहा है कि "क्रोध से प्रीति का नाश होता है, मान से विनय का नाश होता है, माया से विश्वास का घात होता है तथा लोभ से सर्वगुणों का नाश होता है।"
विषय और कषाय-राग और द्वेष स्वरूप हैं। वे प्रात्मा को भयंकर नरक में ले जाते हैं।
_ विषय के अनुराग और कषाय के प्रावेश से आत्मा इस भीषण संसार में अनन्त बार जन्म, जरा और मरण की वेदना सहन करती है। नरक की भयंकर यातनाओं का कारण भी विषय-कषाय की पराधीनता-परवशता ही है। अज्ञानी/ मोहाधीन आत्मा इन्द्रियों के सानुकूल विषयों को पाकर तुरन्त
शान्त सुधारस विवेचन-२२९