________________
पत्नी के साथ माँ जैसा व्यवहार भी कर सकता है। शराबी व्यक्ति नशे में व्यर्थ ही बकवास करता रहता है। कीचड़ व धूल में आलोटता है। कुत्ता उसके मुंह में पेशाब कर देता है, फिर भी उस पेशाब को वह अमृत मानकर पी जाता है। मल-मूत्र में उसे किसी प्रकार की ग्लानि नहीं होती है। यह हालत है शराबी की।
पूज्य उपाध्यायजी म. जो परभाव में लिप्त है, उसकी इस शराबी के साथ तुलना कर रहे हैं। शराबी को जैसे शराब के संग में आनन्द आता है, उसी प्रकार से पुद्गलानन्दी आत्मा को भी पुद्गल के संग में ही प्रानन्द प्राता है, परन्तु उसका यह प्रानन्द पागलपन जैसा ही है ।
सूपर विष्टा व कोचड़ को ही अपना स्वर्ग समझता है, उसे गन्दगी ही प्रिय है। बस! इसी प्रकार से भवाभिनन्दी आत्माएँ भी पुद्गल के प्रानन्द में ही मस्त रहती हैं; परन्तु उनका यह प्रानन्द क्षण विनश्वर होता है; अन्त में, वे दु:ख के गर्त में ही डूबती हैं।
पुद्गलरसिक प्रात्मा पौद्गलिक सुख के लिए तनतोड़ प्रयास करती है। अनुकूल विषय की प्राप्ति में फूले नहीं समाती है। क्षणिक सुख में स्वर्ग की कल्पना कर लेती है और उसी में प्रात्मा का मोक्ष समझती है। Eat, drink and be marry. खामो, पीरो और मौज करो; यही उनके जोवन का सिद्धान्त होता है। परन्तु इन आत्माओं की दशा तो उस शराबी जैसी ही होती है।
शान्त सुधारस विवेचन-१४०