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आपके घर के द्वार पर एक अज्ञात व्यक्ति आता है। उस व्यक्ति से आप सर्वथा अपरिचित हैं, आपका कोई नाता-रिश्ता भी नहीं है। क्या आप उस व्यक्ति को अपने घर में प्रवेश दे देंगे?
इसका जवाब आप 'ना' में ही दोगे। एक अज्ञात व्यक्ति को घर में प्रवेश कराना महान् आपत्ति का कारण बन सकता है। बम्बई जैसे शहरों में लगभग प्रत्येक घर के द्वार पर No admission without permission. का बोर्ड लगा हमा रहता है। अपनी सुरक्षा के लिए व्यक्ति घर का द्वार अन्दर से बन्द ही रखता है। घंटी बजने के बाद परिचित व्यक्ति होने पर ही द्वार खोला जाता है और आगन्तुक व्यक्ति को प्रवेश दिया जाता है। 'अज्ञात व्यक्ति को घर में घुसा देने में खतरा रहता है।' इस लोकोक्ति से सारी दुनिया परिचित है और दुनिया भी इसी प्रकार का व्यवहार करती है।
बस, यही बात हमें आध्यात्मिक क्षत्र में भी घटित करनी है। अपनी आत्मा ज्ञान आदि अनन्त गुणरत्नों की भण्डार है। जहाँ कोमती रत्न आदि पदार्थ होते हैं, वहाँ चोरों के आगमन की सम्भावना अधिक रहती है, अतः उनकी सुरक्षा के साधन भी मजबूत चाहिये। लेकिन अफसोस ! हमने अपने प्रात्मधन की सुरक्षा की कोई परवाह नहीं की और इसका परिणाम क्या हुआ ?
आत्मधन की सुरक्षा के साधनों के न होने से चोरस्वरूप कार्मणवर्गणा के परमाणुओं ने प्रात्म-गृह में प्रवेश कर लिया
और प्रवेश हो जाने के बाद तो उन्होंने तूफान मचाना चालू कर दिया। ज्ञानावरणीय कर्म ज्ञानधन को लूटता है, तो
शान्त सुधारस विवेचन-१४९