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विवेचन तेरा कौन ?
"अरे मोहन ! यह इतनी दौड़धूप किसलिए कर रहे हो ? थोड़ा भी आराम नहीं ?" ___"तुम्हें पता नहीं है, अभी तो व्यापार की सीजन चल रही है। अभी मेहनत होगी तो कुछ ही दिनों में मैं लखपति बन जाऊंगा", मोहन ने रौब से जवाब दिया ।
"अरे दिनेश ! तू इतना भयभीत क्यों है ?"
दिनेश ने उत्तर दिया-"मेरी जेब में ५०,००० रुपये हैं, प्रतः कोई चुरा न ले, इसका सतत भय रहता है।" ।
"अोह सोहन ! रोज तो सूखी रोटी खाते हो और आज इस होटल में नाश्ता-पानी ?"
"तुझे पता नहीं है, मुझे दो लाख की 'लॉटरी' खुल गई है।" "अरे हरि ! इतने रो क्यों रहे हो?" "क्या कहूँ ? एकाकी पुत्र को यम ने उठा लिया है।" "प्रिय राकेश ! आज इतने खुश कैसे नजर आ रहे हो?"
"अाज तो पुत्र की शादी है, बराबर पाँच लाख का माल...! आज खुश नहीं रहे तो फिर कब रहेंगे ?"
एक ही व्यक्ति के जीवन में प्रायः ये सब घटनाएँ देखने को
शान्त सुधारस विवेचन-१५३