________________
परोपकार करे, किन्तु दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता का प्रदर्शन किए बिना नहीं रहेगा।
दुष्ट मित्र जैसी ही इस शरीर की हालत है। इसे कितना भी नहलाया जाय, इसकी कितनी ही सेवा की जाय, तो भी अन्त में तो यह धोखा ही देने वाला है।
बात याद आ जाती है एक श्रेष्ठिपुत्र की। उस श्रेष्ठिपुत्र के तीन मित्र थे। एक मित्र हमेशा साथ रहता था। उसके साथ वह अनेक बार भोजन करता था। अनेक प्रकार की बातें करता था।
दूसरे मित्र से कभी-कभी मिलना होता था, बहुत कम बार उसके साथ खाने का काम पड़ता था।
तीसरे मित्र के साथ क्वचित् ही मिलने का काम पड़ता था और उसके मिलने पर मात्र 'नमस्कार' आदि की प्रौपचारिक क्रियाएँ होती थीं।
एक दिन उस श्रेष्ठिपुत्र ने उन तीनों मित्रों की परीक्षा करनी चाही कि इनमें से सच्चा मित्र कौनसा है ?
श्रेष्ठिपुत्र ने राजा के अतिप्रिय पोपट को पकड़कर अपने घर में छिपा दिया और वह भागा, अपने रोजींदा मित्र के घर ।
मित्र को जाकर बोला- "मैं राजा का अपराधी हूँ। मैंने राजा के प्रिय पोपट को मार डाला है, अतः राजा मुझे पकड़ लेगा, तुम मुझे अपने घर में संरक्षण दो।"
शान्त सुधारस विवेचन-१८५