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द्वादश-नव रन्ध्राणि निकामं ,
गलदशुचीनि न यान्ति विरामम् । यत्र वपुषि तत्कलर्यास पूतं ,
मन्ये तव नूतनमाकूतम् ॥भावय रे०""॥८॥
अर्थ-स्त्री-शरीर के बारह और पुरुष - शरीर के नौ द्वारों में से सतत अपवित्रता बह रही है, जो कभी रुकती नहीं है, ऐसे शरीर में तू पवित्रता की कल्पना करता है, यह तेरा कैसा नवीन तर्क है ? ॥८० ॥
विवेचन बीभत्स देह
इस देहधारी पुरुष के नौ अंगों में से सतत बीभत्स पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं।
दोनों कानों में से मैल, दोनों आँखों में से पानी व मैल, दोनों नासिका-छिद्रों में से श्लेष्मा, मुंह में से लार तथा मल-मूत्र के विसर्जनद्वारों में से मल-मूत्र ।
इस प्रकार इस शरीर के सभी द्वारों से सतत गन्दगी ही बहती रहती है।
कुछ समय के लिए कदाचित् गन्दगी का बहना रुक सकता है, किन्तु पूर्ण विराम तो सम्भव नहीं है ।
स्त्री-शरीर के बारह द्वारों में से सतत गन्दगी बहती है ।
शान्त सुधारस विवेचन-१९८