________________
इन्द्रियाव्रत-कषाय - योगजाः ,
पञ्च-पञ्च-चतुरन्वितास्त्रयः । पञ्चविंशतिरसक्रिया इति , नेत्र - वेद - परिसंख्ययाप्यमी ॥ ७ ॥
(रथोद्धता) अर्थ-इन्द्रिय, अवत, कषाय और योग में से इनकी उत्पत्ति होती है और इनकी संख्या क्रमशः पाँच,पाँच, चार और तीन हैं तथा पच्चीस असत् क्रियाओं के साथ इनकी (प्रास्रवों की) बयालीस संख्या होती है ।। ८७ ॥
विवेचन प्रास्त्रव के ४२ भेद
आस्रव के कुल ४२ भेद हैं -- ५ इन्द्रियों की असत् प्रवृत्ति , ५ अवत, ४ कषाय , ३ योग ,
२५ असत् क्रियाएँ। पाँच इन्द्रियों की असत् प्रवृत्ति
मनुष्य-योनि में जीवात्मा को पाँचों इन्द्रियों की प्राप्ति होती है । विवेकवान् आत्मा इन पाँचों इन्द्रियों को धर्म में जोड़ती है और अपनी आत्मा का कल्याण करती है । वह आत्मा कानों से
शान्त सुधारस विवेचन-२१२