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केवलमलमय - पुद्गलनिचये ,
अशुचीकृत-शुचि-भोजनसिचये । वपुषि विचिन्तय परमिह सारं ,
शिवसाधन - सामर्थ्यमुदारम् ॥भावय रे०."॥२॥
अर्थ-यह तो केवल मल के परमाणुओं का ढेर है, पवित्र भोजन और वस्त्रों को भी अपवित्र करने वाला है, फिर भी इसमें मोक्ष-प्राप्ति का सामर्थ्य है, यही इसका सार है ।। ८२ ॥
विवेचन देह में प्रतिष्ठित आत्मा
इस सम्पूर्ण चौदह राजलोक में पुद्गल द्रव्य व्याप्त है । पुद्गल द्रव्य के चार भेद हैं-स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु । परमाणु पुद्गल का एक अविभाज्य अंश है, जिसके पुनः दो टुकड़े नहीं किए जा सकते हैं । इस चौदह राजलोक में स्वतंत्र एक-एक पुद्गल परमाणु भी अनन्त की संख्या में हैं ।
जब एक से दो पुद्गल परस्पर मिल जाते हैं, तो वह दो परमाणु की एक वर्गणा कहलाती है । इस प्रकार इस चौदह राजलोक में दो-दो परमाणुओं के संयोग वाली वर्गणाएँ भी अनन्त पुद्गल समूहों की भिन्न-भिन्न वर्गणाएँ हैं ।
ये पुद्गल परिवर्तनशील हैं। इनके रूप-रस-गन्ध आदि भी बदलते रहते हैं। इन पुद्गल समुदायों की मुख्य आठ वर्गणाएँ हैं
(१) औदारिक (२) वैक्रिय (३) आहारक (४) तैजस (५) भाषा (६) श्वासोच्छवास (७) मन और (८) कार्मण।
शान्त सुधारस विवेचन-२००