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स्वादिष्ट गुलाबजामुन मुंह में डाले और तत्क्षरण उल्टी हो गई। क्या हालत होगी, उन गुलाबजामुनों की? क्या अन्य कोई उस ओर देखने की भी चेष्टा करेगा? नहीं, कदापि नहीं।
मल्लिकुमारी का रूप अत्यन्त सुन्दर था। अनेक राजकुमार उससे विवाह करना चाहते थे। वे उसके रूप में मोहित बने हुए थे। आत्म-स्वरूप की ज्ञाता मल्लिकुमारी ने सोचा, इन राजकुमारों को इस देह की वास्तविकता का ज्ञान कराना चाहिये । यह सोचकर उसने स्ववर्ण समान सोने की एक पुतली बनवाई, जो अन्दर से खोखली थी। उस पुतली के सिर पर ढक्कन था, प्रतिदिन मल्लिकुमारी उस पुतली में भोजन का एक-एक कवल डालने लगी। कुछ महीनों के बाद जब वे छह राजकुमार मल्लिकुमारी के भवन में आए, तब मल्लिकुमारी ने अपनी वह प्रतिमा भी पास में मंगा ली और उसका ढक्कन खोल दिया। ढक्कन हटाते ही उसमें से भयंकर बदबू आने लगी। राजकुमारों का दम घुटने लगा, वे रुमाल से अपना नाक दबाने लगे। ___ मल्लिकुमारी ने कहा- 'राजकुमारो ! तुम मेरे देह में आकर्षित बने हो, परन्तु मेरे देह की वास्तविकता को तुमने पहचाना है ?, देखो, पास में यह मेरी प्रतिमा, जिसमें मैंने प्रति दिन भोजन का एक ही कवल डाला है, फिर भी उसकी यह दुर्गन्ध । तो इस शरीर में तो मैं अनेक बार भोजन डालती हूँ। फिर यह सुगन्धित कैसे रह सकता है ?
मल्लिकुमारी की इस बोधजनक बात को सुनकर सभी राजकुमार प्रभावित हो गए और उन्होंने अपनी आसक्ति का त्याग कर दिया।
शान्त सुधारस विवेचन-१८६