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विवेचन
शरीर की प्रकृति
इस देह की बीना ही कुछ और है ।
हम इस देह को विशुद्ध करने के लिए प्रयत्न करते हैं, परन्तु इस देह का स्वभाव ही बड़ा विचित्र है, जो भी इसके सम्पर्क में आता है उसे यह बिगाड़ देता है, अत्यन्त दुर्गन्धमय बना देता है।
दुनिया में तो जितने कारखाने हैं, वे कच्चे माल को पक्का माल बनाते हैं। कपड़े की मिल देखिए--रुई के मोटे धागों को वह कितने आकर्षक कपड़े के रूप में बदल देती है ?
परन्तु यह शरीर तो विपरीत स्वभाव वाला कारखाना है, यह तो पक्के माल को गंदगी के रूप में बदल देता है।
सुगन्धित इत्र इसके सम्पर्क में पाया तो उसे यह पसीने की गन्दगी में बदल देता है।
स्वादिष्ट पाम व मिष्ठान्न इसके सम्पर्क में आए तो उसे वह विष्टा के रूप में बदल देता है।
सुन्दर व कीमती रेशमी वस्त्रों से इस शरीर को आच्छादित किया, किन्तु उन्हें भी कुछ ही दिनों में बिगाड़ देता है ।
हलवाई की दुकान पर अत्यन्त आकर्षक लगने वाले मिष्ठान्न की इस शरीर के सम्पर्क में आने के बाद क्या हालत होती है ? इससे कोई अपरिचित नहीं है।
शान्त सुधारस विवेचन-१८८