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क्या उस उकरड़े को साफ किया जा सकता है ? नहीं। उसे ऊपर-२ से ज्यों-ज्यों साफ करते हैं, त्यों-त्यों उसकी दबी हुई गन्दगी ही बाहर निकलती है। उस उकरड़े पर सुगन्धित पदार्थ डालना, केवल मूर्खता ही है ।
बस, यह शरीर भी उकरड़े की भाँति ही है, इसे साफ करने की चेष्टा करना केवल मूर्खता ही है । कर्पूरादिभिरचितोऽपि लशुनो नो गाहते सौरभं , नाजन्मोऽपकृतोऽपि हन्त पिशुनः सौजन्यमालम्बते । देहोऽप्येष तथा जहाति न न रणां स्वाभाविकी वित्रता, नाभ्यक्तोऽपि विभूषितोऽपि बहुधा पुष्टोऽपि विश्वस्यते ॥७३॥
(शार्दूलविक्रीडितम्) अर्थ-कर्पूर प्रादि सुगन्धित पदार्थों से वासित करने पर भी लहसुन कभी सुगंध को ग्रहण नहीं करता है। जीवन पर्यन्त नीच व्यक्ति पर कितना ही उपकार किया जाय तो भी उसमें सज्जनता नहीं आती है, इसी प्रकार मनुष्य का देह भी अपनी स्वाभाविक दुर्गन्ध को नहीं छोड़ता है। इस देह की कितनी ही सेवा की जाय, इस देह को कितने ही आभूषणों से विभूषित किया जाय, इस देह को कितना ही पुष्ट किया जाय, फिर भी इस पर विश्वास नहीं रखा जा सकता है ।। ७३ ॥
विवेचन शरीर अपना स्वभाव छोड़ने वाला नहीं है
लहसुन को कर्पूर आदि सुगन्धित पदार्थों के बीच रखा जाय
शान्त सुधारस विवेचन-१८३