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कठिन है और चढ़कर पुनः स्थिर रहना और भी प्रत्यन्त कठिन है। बर्फीली चट्टान पर चढ़ना कठिन है, एक-एक कदम आगे बढ़ाना भी अत्यन्त कठिन है और आगे बढ़ने के बाद उस कदम पर स्थिर रहना भी सरल काम नहीं है । वहाँ पतन की सतत सम्भावना रहती है, इसी प्रकार सम्यक्त्व की चट्टान पर आरोहण करने में भी अनेक समस्याएँ आती हैं । यह चढ़ाव अत्यन्त ही कठिन है |
सम्यक्त्व की चट्टान पर चढ़ने के लिए और उस पर स्थिर रहने के लिए प्रतिदिन अन्यत्व आदि भावनाओं से आत्मा को भावित करना चाहिये ।
पूज्य उपाध्यायजी म. ने मुमुक्षु प्रात्मानों के लिए ही इन भावनाओं को रचना की है ।
अब चलो, अन्यत्व भावना के गेयाष्टक के गीत में लयलीन बनकर उसका रसास्वादन भी कर लें
पूज्य उपाध्यायजी म. सर्वप्रथम देह, घन, पुत्र, मकान आदि की मूर्च्छात्याग के लिए उनके वास्तविक स्वरूप का निरूपण करते हुए श्रात्मसम्बोधनपूर्वक कहते हैं कि
हे विनय ! तू देह, धन, मकान आदि में इतना मूच्छित क्यों हो रहा है ? तू कहता है - 'यह देह मेरा है ।'
इस प्रकार देह में ममत्वबुद्धि कर उसके पीछे पागल बन गया है । उसकी पुष्टि के लिए अनेक प्रकार की हिंसक रासायनिक दवाएँ लेता है । थोड़ी सी बीमारी में 'हाय-हाय' प्रारम्भ कर देता है | सख्त वेदना में 'मैं मर गया' 'मैं मर
शान्त सुधारस विवेचन- १६१
शान्त - ११