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किया है, उन्हें एक-दूसरे के ऊपर चढ़ाया जाय तो वह भवन एक राजलोक से भी ऊँचा हो जाय ।
आज तक यह जीवात्मा जितनी सन्तानों का बाप बना है, उसका तो वर्णन ही अशक्य है ।
क्षुधा-तृप्ति के लिए आज तक जो भोजन किया है, उसको समाने के लिए राजलोक भी छोटा पड़ता है।
एक चूहे को भी धन के प्रति कितनी मूर्छा होती है, इसका ज्वलन्त उदाहरण कुमारपाल की वनयात्रा है
• कुमारपाल ने देखा-'एक चूहा अपने बिल में से सोना मोहर निकाल कर बाहर ला रहा है। बराबर बीस सोना मोहर थी। चूहा ज्योंही बिल में गया, कुमारपाल ने कुछ सोना मोहरें उठा लीं। चूहे ने आकर अनुमान किया-'सोना मोहर कम कैसे ?'
चूहा सोना मोहर के लिए तड़पने लगा और उसने अपने प्रारण खो दिए। ..
इस प्रकार हर भव में हमने मूर्छा से धन का संग्रह किया। किसी भव में धन तो साथ आया नहीं, किन्तु उसकी मूर्छा सदा साथ रही और उस मूर्छा के परिणामस्वरूप सर्वतंत्र-स्वतंत्र आत्मा को अनन्त बार गर्भावास का कैदी बनना पड़ा।
आज तक हम अनन्त धन छोड़कर पाए हैं, अनन्त परिवार हमें छोड़ने पड़े हैं, परन्तु उनमें से कोई भी महाप्रयाण के समय साथ में नहीं चला है। धन का ढेर तो दूर रहा किन्तु एक
शान्त सुधारस विवेचन-१६७