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अर्थ-जिसे अपने प्रति प्रेम नहीं है, उससे प्रेम करने में अनेक सन्ताप सहन करने पड़ते हैं। इन पुद्गलों के समूह को तेरे प्रति कोई प्रेम नहीं है। तू व्यर्थ ही ममता की गर्मी वहन कर रहा है ।। ६८ ॥
विवेचन मैत्री समान से होती है
पतंगा अग्नि से प्रेम करना चाहता है, उसका आलिंगन करना चाहता है, उसके हृदय में अग्नि के प्रति अपार स्नेह है, परन्तु वह प्रेम एकांगी है, अग्नि के हृदय में उसके प्रति कोई प्रेम नहीं है। अतः अग्नि और पतंगे का प्रेम कैसे टिक सकता है ? पतंगा ज्योंही अग्नि का संग करता है, त्योंही अग्नि उसे जलाकर भस्मीभूत कर देती है ।
जैसे दोनों हाथों से ताली बजती है, उसी प्रकार प्रेम भी तभी टिकता है, जब वह दोनों ओर से होता है। एकांगी प्रेम अल्पजीवी और अस्थिर होता है ।
इसी प्रकार तू पौद्गलिक पदार्थ से प्रेम करता है। तू धन से प्रेम करता है, मकान से प्रेम करता है, मोटर से प्रेम करता है। परन्तु क्या तूने कभी यह सोचा है कि तेरी यह प्रीति एकपक्षीय है अतः यह प्रेम टिकने वाला ही नहीं है। तू धन से प्रेम करता है किन्तु धन तुझसे प्रेम नहीं करता है, तू बंगले को चाहता है किन्तु बंगला तुझे नहीं चाहता है। अतः एकपक्षीय प्रीति कैसे टिक सकती है !
प्रेम वही दृढ़ बनता है, जहाँ दोनों की प्रकृति एक हो।
शान्त सुधारस विवेचन-१७२