________________
और उसने एक दिन नाविक को कहा—'क्या तुम ऐसे टापू से परिचित हो, जहाँ कोई मनुष्य नहीं रहता हो ?'
उसने कहा-"हाँ, एक टापू मेरे ख्याल में है ।
वह ब्राह्मण नाव में बैठ गया और एकान्त टापू पर जा पहुचा। उस टापू पर अन्य कोई मनुष्य नहीं था, वहाँ एकमात्र गन्ने की फसल थी।
टापू के पास की किसी नदी में वह स्नान कर लेता और अपने पापको पवित्र मानता। भूख के समय वह गन्ना चूसकर खा लेता। धीरे-धीरे समय बीतने लगा। मात्र गन्ने के रस के कारण धीरे-धीरे उसे कंटाला आने लगा।
एक दिन अपनी नाव के टूट जाने से एक यात्री उस टापू पर आ पहुंचा। वह अन्य किसी यान की इन्तजारी में था। टापू पर अन्य फल न होने से वह भी गन्ना ही चूसता। गन्ने के रस का पाचन न होने से उसे दस्त लगने लगी। वह अलगअलग स्थानों में जाकर मल करने लगा।
शौचवादी ब्राह्मरण गन्ने के स्वाद से कंटाल गया था, वह किसी अन्य फल की तलाश में था। आखिर वह दूसरे यात्री के मल-विसर्जन के स्थान पर आ गया और उसकी दस्त के शुष्क मल को ही अन्य फल समझकर खाने लग गया। कुछ दिन बीते । एक दिन अचानक उस यात्री से उसकी भेंट हो गई।
शौचवादी ब्राह्मण ने पूछा-"तुम क्या खाते हो?" उसने कहा-“मात्र गन्ने का रस ।"
शात सुधारस विवेचन-१७९